
वॉशिंगटन। अमेरिका की एक स्टार्टअप कंपनी हेलियोस्पेक्ट जीनोमिक्स ने दुनिया भर में बहस छेड़ दी है। कंपनी का दावा है कि वह इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) प्रक्रिया से पैदा होने वाले भ्रूणों के बुद्धि स्तर (आईक्यू)और आनुवंशिक गुणों के आधार पर जांच कर सकती है। इसके बाद माता-पिता अपने बच्चों के लिए सबसे बेहतर भ्रूण का चुनाव कर सकते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) सेवा बेहद महंगी है। हेलियोस्पेक्ट 100 भ्रूणों की जांच के लिए करीब 50,000 अमेरिकी डॉलर (करीब 42 लाख रुपए) खर्च करने पड़ रहे है। कंपनी का दावा है कि हेलियोस्पेक्ट तकनीक से चुने गए बच्चे औसतन छह अंकों तक ज्यादा आईक्यू वाले हो सकते हैं। उधर, विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक गंभीर नैतिक सवाल खड़े करती है। कैलिफोर्निया स्थित एक सेंटर के निदेशक ने चेतावनी दी कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह तकनीक ‘श्रेष्ठ’ और ‘हीन’ जीन वाले विचार को सामान्य बना देती है। उनका कहना है कि ऐसी सेवाएं यह गलत धारणा मजबूत कर सकती हैं कि असमानता का कारण सामाजिक या आर्थिक व्यवस्था नहीं बल्कि जैविक अंतर हैं। हेलियोस्पेक्ट की तकनीक मुख्य रूप से ब्रिटेन के यूके बायोबैंक के आंकड़ों पर आधारित है। इस बायोबैंक में पांच लाख से ज्यादा ब्रिटिश नागरिकों की जेनेटिक जानकारी दर्ज है, जिसे केवल सार्वजनिक हित में स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए उपलब्ध कराया जाता है।
बता दें ब्रिटेन में कानूनन भू्रण चयन केवल गंभीर बीमारियों से बचाव तक ही सीमित है, उच्च आईक्यू के लिए भ्रूण चयन पर रोक है, लेकिन अमेरिका में ऐसे प्रतिबंध स्पष्ट रूप से लागू नहीं हैं, जिससे कंपनियों को छूट मिल जाती है। हेलियोस्पेक्ट के सीईओ जो पहले वित्तीय बाजारों में ट्रेडर रह चुके हैं उनका कहना है कि इसके बाद कोई भी जितने चाहे उतने बच्चे कर सकेगा और वे बच्चे स्वस्थ, रोगमुक्त और समझदार होंगे। उनका भविष्य शानदार होगा, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह विचार यूजेनिक्स जैसी खतरनाक अवधारणाओं को बढ़ावा दे सकता है।
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