भाजपा से बेआबरू होकर निकले सत्यपाल, मेनका और धनखड़, अब किसकी बारी?

नई दिल्ली। जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे के बाद सियासी गलियों में कयासों का दौर चल पड़ा है। एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि जगदीप धनखड़ एक दौर में जनता दल में सक्रिय थे और मूलत: समाजवादी विचारधारा के नेता रहे हैं। अब उनकी उपराष्ट्रपति पद से विदाई हुई है, लेकिन वह पहले शख्स नहीं हैं, जो जनता दल से भाजपा में आए और फिर बेआबरू होकर निकले। पीलीभीत और सुल्तानपुर से सांसद रहीं मेनका गांधी हों या फिर जम्मू-कश्मीर, मेघालय, गोवा और ओडिशा के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक हों। ये सभी नेता एक दौर में जनता दल में थे। मेनका गांधी ने तो भाजपा में काफी समय पहले ही एंट्री ली थी। वह अब भी औपचारिक तौर पर भाजपा में हैं, लेकिन किसी पद पर नहीं हैं। सत्यपाल मलिक और जगदीप धनखड़ हाल के सालों में एंट्री किए थे और उन्हें मोदी सरकार में पद और प्रतिष्ठा भी दी गई।

चर्चा है कि सरकार का उनके प्रति भरोसा कुछ कारणों से कम हो गया है। किसान आंदोलन को लेकर बयान और न्यायपालिका के खिलाफ आक्रामक रुख को भी एक वजह माना जा रहा है। फिर अंत में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग का विपक्षी प्रस्ताव स्वीकार करना भी उनकी विदाई का शायद कारण बन गया। हालांकि ये सब कयास ही हैं क्योंकि किसी भी कारण की पुष्टि नहीं है।

फिर कुछ समय बाद उन पर सरकार का भरोसा कम हुआ तो अचानक ही पद से हटा दिए गए। यहां बेआबरू होकर निकलने की बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि फेयरवेल स्पीच तक का मौका उपराष्ट्रपति रहे जगदीप धनखड़ को नहीं मिला। इसके अलावा सत्यपाल मलिक और सरकार के रिश्तों में तो इतनी कड़वाहट आ गई कि पूर्व गवर्नर लगातार आरोप लगाते रहे। यशवंत सिन्हा भी इन्हीं नेताओं में से एक रहे हैं, जो जनता दल से भाजपा में आए। वाजपेयी सरकार से लेकर मोदी राज तक में उन्हें सम्मान मिला, लेकिन भाजपा के कूचे से बेआबरू होकर ही निकले।

भाजपा के लोग मानते हैं कि इस तरह जनता दल से आए कई बड़े नेताओं का बाहर होना रीति-नीति को न समझना भी है। भाजपा में आमतौर पर संघ या फिर एबीवीपी से निकले लोगों की बहुलता रही है। इसकी वजह है कि ऐसे नेता विचारधारा को समझते हैं और किसी तरह की असहमति होने पर चुप रहते हैं या फिर उचित फोरम पर ही व्यक्त करते हैं। लेकिन जनता दल से आए इन नेताओं ने मुखरता दिखाई और अंत में टकराव की स्थिति बन गई। ऐसे ही एक नेता सुब्रमण्यन स्वामी भी हैं, जो मोदी सरकार में ही राज्यसभा सांसद बने और आज बेहद मुखर हैं और बागी तेवरों में दिखते हैं।कि दाल में कुछ काला है। उन्होंने केंद्र सरकार की विदेश नीति को भी निशाने पर लिया और कहा कि आज कोई भी देश भारत की विदेश नीति का खुलकर समर्थन नहीं कर रहा है। उन्होंने इसे कूटनीतिक असफलता करार दिया। बहरहाल राहुल गांधी के इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी है।