
नई दिल्ली। भारत और ब्रिटेन अगले सप्ताह मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा दिया जाना मुख्य लक्ष्य है। अधिकारियों ने बताया कि इस साल 6 मई 2025 को दोनों देशों ने एफटीए से संबंधित चर्चाओं के निष्कर्ष तक पहुंचने की घोषणा की थी। समझौते में भारत से ब्रिटेन को भेजे जाने वाले चमड़े, फुटवेयर और कपड़े जैसे श्रम प्रधान उत्पादों के निर्यात पर लगाए जाने वाले कर को हटाया जाएगा। जबकि ब्रिटेन से व्हिस्की और कार का आयात सस्ता होगा। भारत और ब्रिटेन ने अगले पांच वर्षों में यानी 2030 तक अपने व्यापार को दोगुना कर 120 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। अधिकारी ने कहा कि अभी एफटीए के मूल अंश (टेक्स्ट) की कानूनी घिसाई जारी है। जिसके बाद इस पर अगले सप्ताह हस्ताक्षर किए जाने की संभावना है। एक बार समझौते पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद उसे ब्रिटेन की संसद की मंजूरी दिलाने की आवश्यकता होगी। जबकि भारत में इसे लागू करने से पहले कैबिनेट की मंजूरी लेनी पड़ेगी। हस्ताक्षर के बाद समझौते के क्रियान्वयन में करीब एक साल का समय लग सकता है। गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच एफटीए पर हस्ताक्षर से जुड़े कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिरकत कर सकते हैं। जिसे लेकर मीडिया में बीते कुछ वक्त से पीएम की ब्रिटेन की यात्रा को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि अभी मामले में आधिकारिक बयान आना बाकी है।
वहीं, भारत द्वारा रूस से खरीदे जा रहे तेल के मामले पर नाटो महासचिव मार्क रूट की सख्त पाबंदियों यानी ‘द्वितीयक प्रतिबंधों’ की धमकी को भारत ने दो टूक अंदाज में सिरे से खारिज कर दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार को मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए देश के राष्ट्रीय हितों और अंतरराष्ट्रीय बाजारों के हिसाब से निर्णय लेगा। हम किसी भी देश के दबाव में नहीं आएंगे और अपनी संप्रभुता का सम्मान करेंगे। उन्होंने मामले पर कुछ मीडिया रिपोर्ट के जरिए जानकारी मिलने की पुष्टि की और कहा कि भारत संबंधित घटनाक्रम पर बेहद करीब से निगरानी बनाए हुए है। साथ ही मैं ये भी दोहराना चाहूंगा कि अपने देश के लोगों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना ही हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। इस दृष्टिकोण से बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य के बीच हमारा निर्णय बाजार की उपलब्धता पर आधारित है। साथ ही हम ये भी कहना चाहेंगे कि इस विषय पर हमें दोहरी नीति या भेदभाव नहीं चाहिए।
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