
नई दिल्ली। लोगों में धारणा है कि फेफड़ों का कैंसर सिगरेट पीने से होता है। लेकिन हाल ही में एक रिपोर्ट से पता चला है कि बिना धूम्रपान करने वाले लोग भी इसका शिकार हो रहे हैं। इसका प्रमुख कारण है सेकंड हैंड स्मोकिंग…कहने का मतलब वह धुआं जो आप खुद नहीं पीते, बल्कि दूसरों के धूम्रपान से आपके फेफड़ों में पहुंचता है। जब कोई व्यक्ति आपके आसपास सिगरेट, बीड़ी या सिगार पीता है, तो उसके द्वारा छोड़ा गया धुआं और जलते हुए सिरे से निकलने वाला धुआं मिलकर हवा में फैलता हैं, उसे ही सेकंड हैंडस्मोक कहा जाता है। विशेषज्ञ इसे खामोश हत्यारा भी कहते हैं, क्योंकि यह बिना किसी चेतावनी के आपके शरीर पर असर करता है।
मीडिया रिपोर्ट में कैंसर इंस्टीट्यूट के मुताबिक सेकंड हैंड धुएं में सात हजार से ज्यादा रसायन पाए जाते हैं। इनमें से कम से कम 69 तत्व कैंसरकारी होते हैं। इनमें आर्सेनिक, बेंजीन, बेरिलियम, क्रोमियम और फॉर्मलाडेहाइड जैसे विषैले पदार्थ शामिल हैं जो फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक का जोखिम बढ़ा देते हैं। भारत जैसे देशों में समस्या और गंभीर है। सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर जैसे क्षेत्रों की हवा इतनी प्रदूषित हो जाती है कि उसका असर 27 सिगरेट रोज़ पीने के बराबर होता है।
यह सिर्फ धूम्रपान करने वालों के आसपास रहने वालों को ही नहीं, बल्कि प्रदूषित शहरों में रहने वाले सभी लोगों को प्रभावित कर रहा है। भले ही आप सिगरेट न पीते हों, लेकिन अगर आप ऐसे माहौल में सांस ले रहे हैं जहां धुआं या अत्यधिक प्रदूषण है, तो आपके फेफड़ों पर वही असर होगा जो एक सक्रिय धूम्रपान करने वाले पर पड़ता है।
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