
मनीष श्रीवास्तव
भोपाल। मप्र कांग्रेस कमेटी (एमपीपीसीसी) द्वारा हाल ही में जारी जिलाध्यक्षों की सूची ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि कांग्रेस पार्टी आज भी आत्ममंथन की बजाय आत्मघाती रास्ते पर बढ़ रही है। जिस संगठन ने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया और अंग्रेज़ी हुकूमत को चुनौती दी, वही संगठन आज अपने ही निर्णयों से जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ रहा है। कांग्रेस का यह संकट नया नहीं है। लंबे समय तक सत्ता में बने रहना, सत्ता का केंद्रीकरण ने पार्टी को धीरे-धीरे खोखला कर दिया।
जिलाध्यक्षों की हालिया सूची इस बात का प्रमाण है कि कांग्रेस नेतृत्व अब भी योग्यता और जमीनी संघर्ष की बजाय नज़दीकी और पक्षपात को प्राथमिकता देता है। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के पास योग्य और समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी है? बिल्कुल नहीं। लेकिन जब मेहनतकश कार्यकर्ताओं को हाशिए पर धकेल दिया जाता है, तो संगठन की जड़ें खोखली होना तय है।
आज हालत यह है कि कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में भी पार्टी का सफाया हो रहा है। यदि नियुक्त पदाधिकारी वास्तव में काम कर रहे हैं, तो फिर पराजय का सिलसिला क्यों नहीं थम रहा? सच यही है कि व्यक्तिगत स्वार्थ और गुटबाज़ी ने कांग्रेस को अंदर से इतना कमजोर कर दिया है कि जनता का विश्वास लगातार डगमगा रहा है।
कांग्रेस नेतृत्व भूल रहा है कि जनता अब परिवारवाद को नकार चुकी है और योग्यता को तरजीह देना शुरू कर चुकी है। आज के राजनीतिक परिदृश्य में केवल वंशवाद के सहारे आगे बढऩा संभव नहीं है। यदि कांग्रेस ने इस सच्चाई को स्वीकार नहीं किया, तो आने वाले वर्षों में उसका अस्तित्व ही संकट में पड़ सकता है।
बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस खुद को समुद्र की तरह विशाल बनाएगी या फिर मटके में समेटकर दम तोड़ देगी? कहीं यह भी तो नहीं कि अतीत की गलतियों संतों का अपमान, जन आक्रोश की अनदेखी और गुटबाज़ी ने ही पार्टी की नैया को डुबो दिया है। कांग्रेस के लिए अब भी समय है ईमानदार आत्ममंथन करने और जमीनी कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देने का। अन्यथा इतिहास यही लिखेगा कि जिस पार्टी ने देश को स्वतंत्रता दिलाई, वहीं पार्टी अपने ही निर्णयों के बोझ तले बिखर गई ।
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