दो पत्नियों के बीच में उलझा भारतीय राजदूत का केस, सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

तलाक के बाद कर ली थी दूसरी शादी, दोनों पत्नियों से है एक-एक बेटी

नई दिल्ली। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इसाई विवाह अधिनियम, 1872 के मुताबिक एक बार चर्च में विवाह हो जाने पर उसे गांव के बुजुर्गों की भागीदारी वाली प्रथागत कानूनी प्रक्रियाओं द्वारा रद्द नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा था कि विवाह केवल तलाक अधिनियम, 1869 की धारा 10 के मुताबिक हाईकोर्ट या जिला न्यायाधीश के समक्ष शुरू की गई कार्यवाही के जरिए से ही भंग किया जा सकता है।

इस फैसले ने क्यूबा में भारतीय राजदूत थोंगकोमांग आर्मस्ट्रांग चांगसन को एक अजीबो-गरीब वैवाहिक स्थिति में डाल दिया है क्योंकि उनकी दो पत्नियां थीं। 2022 में हाईकोर्ट की ओर से यह घोषित किए जाने से पहले कि 1994 में नेखोल चांगसन के साथ उनकी चर्च में हुई शादी कायम है। उन्होंने तलाक के बाद दूसरी महिला से शादी कर ली। दोनों शादियों से उनकी एक-एक बेटी है।

चांगसन की अपील के लंबित रहने के दौरान सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आदेशित मध्यस्थता विफल होने के बाद जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मौखिक रूप से कहा था कि हाईकोर्ट का फैसला कानूनी रूप से सही है। यह देखते हुए कि भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी की शादी को करीब डेढ़ दशक हो चुके हैं, पीठ ने इस कानूनी-वैवाहिक जटिलता का समाधान खोजने और पहली पत्नी को नया जीवन शुरू करने में मदद करने का फैसला किया।

राजदूत ने कहा कि वह नेखोल को 20,000 रुपए मासिक गुजारा भत्ता दे रहे हैं और उन्हें दिल्ली में एक घर भी दिया है। नेखोल ने खुद इस मामले की पैरवी की। उन्होंने कोर्ट को बताया कि उन्होंने अपने पति की किसी भी भागीदारी के बिना अकेले ही अपनी बेटी का पालन-पोषण किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि अब उनके पति ने चालाकी से उनकी बेटी को उनसे अलग कर दिया है। राजदूत की वकील ने कहा कि पिता अपनी वयस्क बेटी का खर्च उठा रहे हैं, जो बेंगलुरु में अपना करियर बना रही है।