August 23, 2025

एनडीए ने राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर डीएमके को चिंता में डाला

नई दिल्ली। एनडीए उम्मीदवार की घोषणा के बाद अब तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों पर सबकी नजरें आ टिकी हैं, क्योंकि सीपी राधाकृष्णन को चुनावी मैदान में उतारकर एनडीए ने इंडिया अलायंस खासकर डीएमके को चिंता दे दिया है। पहली चिंता तो यह है कि राधाकृष्णन राज्य के प्रभावशाली ओबीसी समुदाय से आते हैं, जिसके वोट बैंक पर डीएमके की बड़ी पकड़ रही है। दूसरा कि वह तमिलनाडु से हैं।

कांग्रेस समेत उसके गठबंधन के कई दल भी ओबीसी हितों के समर्थक रहे हैं। ऐसे में राधाकृष्णन का विरोध करना डीएमके समेत इंडिया अलायंस को भारी पड़ सकता है। क्योंकि अगले साल तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने हैं। दूसरी बड़ी बात कि राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति चुनाव में उातरकर भाजपा उन्हें तमिलनाडु गौरव के रूप में खूब प्रचारित कर सकती है। डीएमके के मुख्य प्रतिद्वंद्वी एआईएडीएमके भी इस मुद्दे को भुना सकती है। तमिलनाडु विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पलानीस्वामी ने कहा है कि राधाकृष्णन, जिन्हें प्यार से सीपीआर कहा जाता है, को उनकी सार्वजनिक सेवा और जनता के प्रति समर्पण के लिए पुरस्कृत किया गया है। बहरहाल, भाजपा के इस दांव की काट क्या हो, इस पर मंथन और विचार-विमर्श के लिए विपक्षी दलों के नेता बैठक करने वाले हैं। इसमें 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार समेत रणनीति पर चर्चा होने की उम्मीद है। यहां बात भी गौर करने वाली है कि पिछले राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में, क्षेत्रीय भावनाओं के आधार पर गठबंधन पार्टी के बीच मतदान हुआ था। भाजपा को उम्मीद है कि राधाकृष्णन के मामले में भी ऐसा ही हो सकता है।

हालांकि, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में पहले भी क्षेत्रीय आधार पर क्रॉस वोटिंग देखी गई है। कांग्रेस ने जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में प्रणब मुखर्जी को खड़ा किया था, तब लेफ्ट और टीएमसी ने किसी और उम्मीदवार को अपना समर्थन दिया था। इसी तरह, यूपीए ने जब प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को इस शीर्ष पद के लिए खड़ा किया था, तब शिवसेना ने महाराष्ट्र से आने वालीं पाटिल को अपना समर्थन दिया था। इसी तरह, जब इंदिरा गांधी ने ज्ञानी जैल सिंह को कांग्रेस का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था, तब कट्टर प्रतिद्वंद्वी अकाली दल ने उनका समर्थन करते हुए कहा था कि वह राष्ट्रपति बनने वाले पहले सिख होंगे। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए भी जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में एपीजे अब्दुल कलाम को सामने लाया था, तब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस, दोनों ने उनका समर्थन किया था क्योंकि दोनों ही एक मुस्लिम को राष्ट्रपति बनाने के लिए उत्सुक थे। चूंकि, इन चुनावों में पार्टी व्हिप लागू नहीं होते, इसलिए क्रॉस वोटिंग के कारण यह चुनाव ज़्यादा लचीला हो जाता है और इसके परिणामस्वरूप कई विपक्षी दल खुलकर सरकार समर्थित उम्मीदवार का समर्थन करते हैं।