
परियोजना के लिए पांच बार नाम बदले जा चुके हैं और तीन बार सर्वे हो चुके
ग्वालियर/भोपाल। मध्यप्रदेश के चंबल संभाग के तीन जिलों को उत्तर प्रदेश व राजस्थान से जोडऩे वाले अटल प्रगति पथ (अटल एक्सप्रेस-वे) की उलझने खत्म नहीं हो रही हैं। पांच बार इसका नाम बदल चुका है। तीन बार भूमि अधिग्रहण व अलाइनमेंट के सर्वे हो चुके हैं। सवा दो साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नए सर्वे (चौथे सर्वे) के आदेश दिए। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव एक साल पहले अपने प्रथम बजट में अटल प्रगति पथ के निर्माण का ऐलान किया। इसके बाद भी यह एक्सप्रेस-वे सरकारी व्यवस्था में गुमसा हो कर रह गया है।
हम बता देंं कि वर्ष 2018 में प्रदेश सरकार ने चंबल के तीनों जिलों मुरैना, भिंड और श्योपुर को राजस्थान-उत्तर प्रदेश के एक्सप्रेस-वे के जरिए देश के कई महानगरों से जोडऩे के लिए चंबल एक्सप्रेस-वे, जो पांच बार नाम बदलते हुए अंत में अटल प्रगति पथ हुआ, उसे मंजूरी दी। केंद्र सरकार ने इसे भारत माला प्रोजेक्ट में शामिल भी किया, इसके बाद प्रदेश सरकार को केवल जमीन देनी थी, निर्माण का पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाती।
नए सर्वे के लिए आदेश जारी किए
मार्च-2023 में सर्वे और भूमि अधिग्रहण का काम लगभग पूरा हो गया था, तभी किसानों के विरोध कि चलते 27 मार्च 2023 को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अटल प्रगति पथ के तीसरे सर्वे को रद करने का मौखिक आदेश वीडियो कान्फ्रेंस में दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री के मौखिक आदेश पर सर्वे जहां का तहां रोक दिया गया। उलझन यह है, कि सरकार ने इस मामले में न तो पुराने सर्वे को निरस्त करने का कोई आदेश अब तक जारी किया है और न ही नए सर्वे के आदेश जारी किए हैं। अटल प्रगति पथ के निर्माण की उम्मीद तब जागी जब, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने पहले बजट में 03 जुलाई 2024 को अटल प्रोग्रेस-वे के निर्माण की घोषणा की थी। मोहन सरकार ने अटल प्रगति पथ को 299 किलोमीटर लंबा बनाने का ऐलान किया था, जबकि पुराने सर्वे में यह 404 किमी लंबा प्रस्तावित था। प्रदेश सरकार के बजट के एक साल बाद भी अटल प्रगति पथ के निर्माण की प्रक्रिया रत्तीभर आगे नहीं बढ़ी।
214 गांवों की जमीन चिन्हित
मार्च-2023 के सर्वे व भूमि अधिग्रहण का रिकार्ड बताता है, कि अटल प्रोग्रेस-वे के लिए मुरैना, श्योपुर और भिंड जिले के 214 गांवों के 26448 किसानों की 1965.300 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण के लिए चिह्नित हुई थी। इस जमीन को सरकारी रिकार्ड में अटल प्रगति पथ के लिए बता दिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री ने यह सर्वे मौखिक निरस्त किया, सरकार ने ऐसा कोई आदेश कभी जारी नहीं किया, इसलिए वह जमीन अभी भी अटल प्रोग्रेस वे के लिए चिह्नित है। इन जमीनों की रजिस्ट्री और नामांतरण तक में किसानों को भारी फजीहतों का सामना करना पड़ रहा है।
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